एक मिसाल “बच्चों का घर"
कहते हैं जिसके सर पर मां बाप का साया होता है मैं वास्तव में दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान होता है यूं तो कायनात भी मां के प्यार को पूरा नहीं कर सकती पर उनका क्या जिनके दामन पर मां का प्यार कभी नसीब नहीं होता यतीम कहो या अनाथ सुनने में शब्द जितना भावनात्मक लगता है उसको केवल शब्दों में बयां कर पाना मेरे लिए संभव नहीं है परंतु कोशिश कर रहा हूं आज पुरानी दिल्ली के दरियागंज इलाके में एक जाना पहचाना अनाथ आश्रम बच्चों का घर मैं जाना हुआ यह अनाथ आश्रम हकीम अजमल खान द्वारा बसाया गया था जो समाज सेवा के क्षेत्र में एक बहुत ही जाना पहचाना नाम है हकीम अजमल खान जिन्होंने 1891 में घर की नींव रखी ...गरीबी से लड़ते हुए लोग या किसी भी कारणवश अपने बच्चों का भरण पोषण कर पाने में असमर्थ लोग अपने यहां बच्चों को छोड़ जाया करते हैं वैसे तो यह अनाथ आश्रम सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम बच्चों को ही पनहा देता है समाज के हर तबके को साथ लेते हुए आगे बढ़ रहा है जब बच्चों से मैं मिला तो ऐसा लगा इन यतिमो ने ऐसा क्या गुनाह किया जो उनके परिवारों ने उनको छोड़ दिया परंतु दुनिया में हर प्रकार के लोग रहते हैं यह संस्था पिछले कई वर्षों से निरंतर यह काम कर रही है जो काफी प्रशंसा के योग्य है वहां जाने के पश्चात मन में एक अत्यंत पीड़ा भी उत्पन्न हुई क्यों समाज के लोग इनकी मदद के लिए आगे नहीं आते हजारों लाखों की तादात में समारोह पर खर्च करने वाली भारतीय संस्कृति इन . अनाथ आश्रमों पर नजर क्यों नहीं दौड़ाती चिंतन का विषय है....